
जब श्रीराम भक्ति का, चढ़ेगा हम पर रंग ,
सीखेंगे हम उनसे, बदलेंगे अपने ढंग ।
मोहमाया, दम्भ में उलझे, हम कैसे बाहर आएं,
भव सागर से निकलने का, रास्ता राघव दिखलायें ।
भटकते जीवन को सिर्फ, राम-संदेशों का है सहारा,
उनकी आराधना से ही, जीवन तर जायेगा हमारा ।
उस ईश से सीखें, कैसे देना पड़ता है बलिदान,
थोड़ा बहुत पा कर हम, दिखाने लगते हैं अभिमान ।
परेश में थी अपार शक्ति, फिर भी धैर्य और सम्भाव,
वचन निभाने महल छोड़, अपनाया उन्होंने अभाव ।
अथाह संघर्ष करना पड़ा उन्हें, भले ही थे भगवान,
जरा सी आपदा में हमतुम, हो जाते दुखी परेशान ।
विपदाओं से घिरे रहे, फिर भी धर्म न छोड़ा,
शिव धनुष भी कितने, आदर सत्कार से तोडा ।
रिश्ते निभाने का हुनर, अपने परायों का सम्मान,
भावनाओं के कंधे पर, रखें ज़िन्दगी की कमान ।
मेरे प्रभु के गहने रहे, मर्यादा, सत्य और त्याग,
उनकी राहों पर चल पाएं, तो धन्य हमारे भाग्य ।
हर ओर कृपा कौसलेय की, करते ऐसी आस,
राघव से हाथ जोड़, ये विनती करे ‘विश्वास’ ।
(ये रचना ‘राम काव्य पीयूष’ में प्रकाशित हो चुकी है)
बहुत सुंदर रचना