आज तुम्हारे शहर से गुजरना हुआयादों की नदी में जैसे उतरना हुआकई लम्हे, कई किस्से, कई बातेंआग़ोश के दिन, फ़ासले की रातेंगली की मोहब्बत, रिश्ते और चौबारेकभी महका करते थे बातों से हमारेमुलाक़ातों में थे जज़्बातों पर पहरेकुछ बोले लफ्ज कुछ लबों पर ठहरेदिखा कोई जाड़े में अलाव पर हाथ तापतेयाद आयी वो शाम तेरी…
Author: Vishwas
बदल गयी
सूरत वही है आपकीसीरत बदल गयीमूरत बना के जिसको रखाफितरत बदल गयी बुलंदियों के दौर मेंतेरे वादे हजार थेदामन चाक -चाक अबनीयत बदल गयी शिकवे शिकायतें तेरीसुनते थे रात भरमसरूफ तुम ऐसे हुएउल्फत बदल गई दुनिया के सवालात कादेते रहे जवाबखाई है ऐसी चोट अबतबीयत बदल गयी उम्मीद ये हमें थीरहेंगे सुकून सेहमसे बिछड़कर उनकी किस्मत…
दे गया
जाते जाते वो मुझे एक किताब दे गयाताउम्र के लिए इक हसीं ख़्वाब दे गया पलटते पन्ने दर पन्ने खुल रहे कई राजजैसे आहिस्ता सरकता हिजाब दे गया समेटे साथ बीते हर लम्हे की दास्ताँ कोकहीं ‘छलिया’ कहीं ‘बुत’ का ख़िताब दे गया ढूंढ़ता हूँ हर लिखे अल्फ़ाज़ के मायनेये कैसा अजब सा मुझे हिसाब…
प्रवास
हर प्रवास के पीछे एक आस हैकुछ पाने कीज़माने को दिखाने कीअपना संजोए रखकरनया कुछ अपनाने की हर प्रवास के पीछे कुछ अधूरा हैसब कुछ मिलकर भी नहीं हुआ पूरा हैदर्द अपनो से दूरी कापांव जमाने की मजबूरी काअकेले में रोने कासब होकर भी खोने का हर प्रवास के पीछे एक विश्वास हैकुछ मिलेगा इसकी…
कुछ नहीं
जब भी पूछा ‘क्या सोच रहे हो’?तूने ‘कुछ नहीं’ बोला हर बार उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने हमेशा सुने –तेरे अल्फ़ाज़ अनकहेवो ताने जो तुमने मौन सहेवो तेरे अश्क जो नहीं बहेऔर जज्बात जो उलझे रहे उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने महसूस की –छटपटाहट तेरे भीतरमुझे खो देने का डरदबी हसरतों के समंदरअनछुए ख़्वाबों के…
एक अदद हाथ
किसी तरह की अपेक्षा हीजब न बची हो रिश्तों मेंकुछ भी न हो एकमुश्तसब थोड़ा-थोड़ा किश्तों में दूर दूर तक जहाँ नजर जाएसब वीराना नजर आता है|अकेला होने से, अकेला होनेका दुख ज़्यादा सताता हैरात जो कटी हो करवटें बदलते और घडी ताकते चेहरे पर पड़ती धूप को जबसुबह अपने हाथों से ढांकते उस लम्हा बस जरुरत हैमात्र…
देश से दूर
अपने देश से दूर आ बसाये देश लगने लगा है अपनादेह और मन की ये यात्राअब लगे जैसे कोई सपना जब आया, था मैं अनजानासब तरफ थी अजनबी राहेंइसने कुछ ऐसे अपनाया किमुस्काते चेहरे हैं खुली बाहें उम्मीद के घरोंदे कोतजुर्बों से सजाया हैघर से दूर इस घर कोशिद्दत से बसाया है मेरे गाँव के…
शाम सुहानी हो गयी
शाम सुहानी हो गयीग़ज़ल रूहानी हो गयीहम दोनों जब मिले तोकुछ बात पुरानी हो गयी सालों से अधूरा थापर इंतेज़ार पूरा थाकुछ उसने था जोड़ाहमने भी कुछ थोड़ा पूरी कहानी हो गयीशाम सुहानी हो गयी ताल फिर बजे छमछमझूम उठे मन के सरगमजज्बातों का जैसे बहाव थाख्वाहिशों का कोई राग था संजीदा थी मस्तानी हो…
कुछ कहना था
मौन की सीमाएँ लाँघकर घबराहट को पीछे बांधकरभावों की उलझन समेटकरउमड़ती हुई हसरतें लपेटकरमुझे तुमसे कुछ कहना था महफ़िलों में भी तन्हा रहता हूंखामोश सा सब कुछ सहता हूंतारे गिन गिन हमने रात गुजारीवही बोलते हैँ तस्वीर से तुम्हारीजो रूबरू तुमसे कहना था चलोगे क्या थाम मेरा हाथइस सफर में दोगे मेरा साथसमझ रहे हो…
आहट
तुम भले खुद आओ न आओ बस तुम्हारी आहटें आती रहें दुनिया की भाग दौड़ में आगे निकलने की होड़ में दिनोदिन बढ़ती हुई उलझन थक हार कर जब टूटता तन जब राह हमें कुछ सूझे नहीं अब क्या करें कुछ बूझे नहीं तब हल्की सी आहट तुम्हारी अमृत बूँद बन जाती है हमारी जहां…