हर समय तुम्हें मिलूँ, दिखूँ सजकर
कोई परी या अप्सरा सा बनकर
जल्दी से बिखरे बाल बनाना
तुमसे अपनी झुर्रियां छिपाना
उम्र के साथ बढ़ते वज़न को ढांकना
तुम्हें मिलने से पहले आईने ताकना
माला चूड़ी पहन इत्र लगाना
फिर अपनी अदाओं से लुभाना
तब तुम्हारा कहना कि प्यार है
थोड़ा सा नहीं बेशुमार है
सोचने पर करता है मजबूर
कि क्या ये प्यार ही है हुज़ूर
जो कुछ है बे-तरतीब मेरा
माथे पे बल थकता चेहरा
मेरी कमियाँ मेरी भूल
क्या होंगी तुम्हें क़बूल
बिन सजा सँवरा सादा चेहरा देख पाओगे
माथे के बल आँखों की कालिमा अपनाओगे
मेरी ढलती उम्र में भी क्या रहेगा ये प्यार
ये सबकुछ सोचकर हाथ थामना मेरे यार
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