इक बार नहीं कई बार किया है
वो लम्हा हमने बार-बार जिया है
प्यार में डूबे इस दिल से हारकर
जज़्बातों को पन्नों पर उतारकर
भावनाओं को पिरोकर
एहसासों को जोड़कर
थोड़ा मुस्कान की महक में
थोड़ा अश्कों की दहक में
मोती से अक्षर सजाकर
उलझन की परत हटाकर
अपना पसंदीदा गीत गाते हुए
थोड़ा लिख थोड़ा मिटाते हुए
लिखा कई बार ख़त इज़हार का
बढ़ाने अगला क़दम प्यार का
पर न जाने ये संकोच है कैसा
बहती नदी पर बाँध हो जैसा
झिझक लगाम लगा देती है
ख़्वाहिशों को दग़ा देती है
मुट्ठी में ज़ोर लगा मीस कर
अपने अरमानों को पीस कर
फाड़कर ख़त फेंक देते हैं वहीं कहीं
जहाँ हमारे सिवा कोई आता जाता नहीं