ये कैसा है समाज
जहाँ नायक नकारे जाते हैं
सामने हों तो तिरस्कार
बाद में पुतले सँवारे जाते हैं
ज्यूँ जीते जी उन्हें पूजा जायेगा
तो वो महान नहीं बन जायेगा
इसलिए खुद के लिए धकेलो उन्हें पीछे
लूट लो वो बगीचे जो उन्होंने थे सींचे
करो नजरअंदाज या नीचा दिखाओ
वो तेज चल रहा तो टंगड़ी अड़ाओ
दामन जो साफ़ है तो कीचड़ उछालो
गर सत्य नहीं तो झूठी कहानी बना लो
राम को मर्यादा, कृष्ण को गीता सिखाओ
सीता को संयम और राधा को प्रेम पढ़ाओ
शकुनियों की क्या कहें, भीष्म खड़े मौन से
निर्वस्त्र होती द्रौपदी, कहे व्यथा कौन से
बना कर चक्रव्यूह घेर लो उसे हर ओर से
बीच राह न आये, बाँध दो उसे एक छोर से
इतने पर तो टूट कर बिखर जायेगा ‘निराला’
और अंत समय तन पर होगी फटी सी दुशाला
जब वो चलें जाएँ तो फिर उन्हें याद करेंगे
उनकी अच्छी बातो की फिर बात करेंगे
मुस्कान और कहकहे उनके नजर आएंगे
और पुतला बनाकर वो फिर सँवारे जायेंगे
फूलों से सजी उनकी तस्वीर आगे लगाएंगे
आज के किसी नायक को फिर पीछे हटाएंगे