मैंने कविता सुनाई ‘बावरा मन’
वो बोले तभी नहीं लगते तुम प्रसन्न
इतना दर्द तुम कहाँ से लाये हो
कौन है जिसे तुम भुला नहीं पाए हो
फिर कहीं ‘दास्ताने इश्क़’ पर कुछ सुनाया
लोगों को सुनने में भी बहुत मजा आया
बोलते है – तुम रहे बड़े रंगीन मिज़ाज हो
फिर क्यों इतने संजीदा दिखते आज हो
एक बार मैंने खामोश इश्क की विरह सुनाई
मेरे भाव सुन कुछ श्रोताओं की आँखे भर आयी
किसी ने पूछा क्या वो थी आखरी मुलाकात
क्या उसके बाद कभी नहीं हुई उनसे बात
महफिल में जो माँ बाप पर कुछ सुनाया
कई लोगो को खुद की आँखे पोंछते पाया
एक बुजुर्ग महिला ने कहा – बेटा अब घर चले जाओ
कविता सुनाने से अच्छा जाकर उनके चरण दबाओ
अच्छा लगता है उन तक पहुँच रहे हैं मेरे भाव
मेरे काव्य और शब्द कर रहे हैं सही जगह घाव
पर
ये सब पूछ कर मेरी प्रतिभा पर न उठाओ सवाल
कवि का गहना होते हैं – कल्पना, चिंतन और ख्याल
जरुरी नहीं की सब कुछ मैं खुद पर बिताऊं
तभी जाकर कोई कविता या गीत लिख पाऊं
इसलिए मेरी रचनाओं मेँ न ढूंढो मेरी कहानी
अच्छा चलूँ अब – ये कविता कही और भी है सुनानी