जब जब भी मैं खुद को हम लिखता हूँ
तब तुम को भी अपने संग लिखता हूँ
दुनिया पढ़ के मेरे जो शेर वाह करती है
मैं बस अश्कों से अपनी जंग लिखता हूँ
हवस और हसरतों को जो प्यार कहते हैं
सर ढक कर मैं इश्क का ढंग लिखता हूँ
हमारे ऐब गिनाते समय ये सोच लेना
मैं अब भी अपनी यारी के रंग लिखता हूँ
बदल रही है तारीखें कट रही है ज़िन्दगी
तेरे बिना खुद को कटी पतंग लिखता हूँ
अब भी तेरी चाहत का पश्मीना ओढ़कर
अजब मस्ती में खुद को मलंग लिखता हूँ
एक उम्मीद सी है और एक ‘विश्वास’ सा है
तुम लौट आओगे ये सोच उमंग लिखता हूँ