मिज़ाज़ चाँद का कुछ बदला है ना
बिगड़ते बिगड़ते कुछ संभला है ना
मुद्दतों बाद भर निगाह देखा है उसने
वो पत्थर दिल भी आज पिघला है ना
सकुचा कर उसने पूछा जो मेरा हाल
अनकहे एहसासों से मन मचला है ना
वो आज भी मेरे वज़ूद को हिला देते हैं
क्या कहें कि वो मेरा प्यार पहला है ना
तेज हवा सा आया चंद लम्हों का साथ
पर चलो इनके सहारे मन बहला है ना