ज्यूँ हर काम का एक तरीका होता है
इश्क़ करने का भी सलीक़ा होता है
थोड़ा सा पर्दा हो, थोड़ी सी पर्देदारी हो
नींद में ख़्वाब उनके, जगें तो उनकी ख़ुमारी हो
जब उनसे मिलो, तो मिलने की हो मर्यादा
थोड़ा तकल्लुफ़ हो, नजदीकियां न हो ज्यादा
वो मोहब्बत क्या, जिसमे रूठना मनाना न हो
वो ताल्लुक क्या, जिसमे नज्म न हो, शायराना न हो
मुश्किल है, पर हरदम उनका ज़िक्र न हो
बीते न लम्हा कोई, जब उनकी फ़िक्र न हो
तेरे हर शेर में हो भले, पर कोई ढूंढ न पाये
महफ़िलों में सरेआम, वो नाम कहीं न आये
मुकम्मल या अधूरी, बात है तक़दीर की
ये शय नहीं, जिद या हक़ के तकरीर की
वो बेवफा निकलें, तो भी दुआ-सलाम न छूटे
डोर कच्ची भले हो, पर हमेशा के लिए न टूटे
गर तोल रहे, कि नुकसान हुआ या फायदा
तो तुम्हेँ ख़ाक पता नहीं, इश्क़ का कायदा
इश्क़ के सलीके को, कुछ ऐसे देखे ‘विश्वास’
वैसे सबकी अपनी सोच है, अपने अपने आभास
It is amazing 👏👏!!
आ0 विश्वास जी एक से एक लाज़बाब असआर का गुलदस्ता।