बड़ा अजब प्यार था
पहली पहली बार था
न चाँद तका न तोड़े तारे
प्यार के न थे दुश्मन हमारे
न रोज का मिलना-मिलाना
हुआ ही नहीं रूठना-मानना
न सिनेमा गए न पार्क में मिले
न कर पाए कोई शिकवे गिले
कहीं अचानक ही टकरा जाना
फिर हफ़्तों तक ना मिल पाना
न पर्स में फोटो, न किताब में फूल
हाथ छूने की भी जान कर न करी भूल
कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा बातें
कभी हुई बेचैनी तो करवटों में बितायी रातें
अपने मां-बाप के सामने किसी से न छिपाकर
प्यार की बातें कीं फिजूल किस्सों में मिलाकर
कभी मदिर में वो दिखे तो हाथ जोड़ लिया
दोस्तों में दिखे तो मुस्का के मुंह मोड़ लिया
जब भी मिले तो जल्द लौटने का बहाना
घर में काम है या मामा के घर है जाना
तारीफ़ नहीं करी उस गुलाबी सूट की
न बता सके सच्चाई मासूम से झूठ की
काश कि तब कोई सलीका सिखाता
तो जो कुछ भी था मुकम्म्ल हो पाता
ना खत दिया ना इजहार किया
बड़ा ही अजब सा प्यार किया