प्रेम
प्रेम में बुद्धि का क्या काम
बुद्धि में प्रेम डाल दो ना!!!
जैसे दाल में घी डालते है
जैसे मुँह में शहद डालते है..
जानते हो!
बुद्धि तो बुद्धिमानो का विषय है
यह तो उद्धव का प्रसंग है
गोपियों का विषय तो
प्रेम है!
प्रेम!
साधारण सी गोपियों को प्रेम का पर्याय बना देता है,
तोड़ दिया जिसने अपना वचन भक्त की खातिर,
ऐसा है प्रेम
जो भगवान को भी भक्त का दास बना देता है..
प्रेम आंखन से ही नहीं
बातन से भी टपकता है
मीरा की बातन ते टपका प्रेम
कबीर की आंखन ते टपका प्रेम…
प्रेम कहने का विषय नहीं है,
प्रेम बताने का विषय नहीं है,
प्रेम समझने और समझाने का विषय नहीं
प्रेम भीतर का विषय है
बाहर का विषय कहाँ है प्रेम ?
बाहर देखोगे तो
प्रेम अंदर से बाहर का द्वन्द दिखेगा
जाति, धर्म, नस्ल, देश काल से लड़ता दिखेगा
क्रांति की मसाल लिए आगे ही आगे चलता दिखेगा..
कभी-कभी प्रेम ठंठा जल सा लगेगा
तो
कभी-कभी कुरीतियों और कुप्रथाओ की डालियों को
छाटता दिखेगा…
प्रेमी हरि के शांत रूप सा कभी लगेगा
तो
कभी काली सा भी हुंकार भी भरेगा…..
Very nice poetry mam.