चलो अच्छा हुआ एक ख़त्म हुआ किस्सा बना था जिंदगी का हिस्सा तोड़ कर वो सारे नाते जो लम्बे निभा नहीं पाते दिखावे के रिश्ते टूटे ढीली पकड़ के हाथ छूटे बेवजह के दिखाए सपने कभी थे नहीं जो मेरे अपने बन बैठे थे वो मेरे खुदा अच्छा हुआ, हुए जुदा चलो अच्छा हुआ दौर…
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दुविधा
ये खेल है, या है कोई समर !!क्या होगा, हम जीते जो अगर ?इसमें पड़ने से, क्या फर्क पड़ेगा ?किसी अपने से ही अपना लड़ेगा !!यहां सिर्फ मोहरे भिड़ेंगे या अहम् ?कौरवों को पांडव होने का होगा वहम !!और लड़ना भी उनके लिए जो सोये हैं ?आलस्य और निज स्वार्थ में खोये हैं !!बेचारे मोहरों…
तुम साथ होतीं
जो तुम गर साथ होतींकुछ और ही बात होतीदर्द में भी मुस्काते हमभले ही घनेरी रात होतीं तूफान फिर भी आते तपिश तब भी सताती सह जाते जो तुम सहलाती काश कि तुम साथ होतीं खुद से बन गए अनजान भूले हैँ हम अपनी पहचानहम को हम ही से मिलातीजो गर तुम साथ होतीं जीवन…
नायक नकारे गए
ये कैसा है समाजजहाँ नायक नकारे जाते हैंसामने हों तो तिरस्कारबाद में पुतले सँवारे जाते हैं ज्यूँ जीते जी उन्हें पूजा जायेगातो वो महान नहीं बन जायेगाइसलिए खुद के लिए धकेलो उन्हें पीछेलूट लो वो बगीचे जो उन्होंने थे सींचेकरो नजरअंदाज या नीचा दिखाओवो तेज चल रहा तो टंगड़ी अड़ाओदामन जो साफ़ है तो कीचड़…
इश्क़ का सलीक़ा
ज्यूँ हर काम का एक तरीका होता है इश्क़ करने का भी सलीक़ा होता है थोड़ा सा पर्दा हो, थोड़ी सी पर्देदारी हो नींद में ख़्वाब उनके, जगें तो उनकी ख़ुमारी हो जब उनसे मिलो, तो मिलने की हो मर्यादाथोड़ा तकल्लुफ़ हो, नजदीकियां न हो ज्यादा वो मोहब्बत क्या, जिसमे रूठना मनाना न हो वो…
क्या लिखूं ?
तुझ में बसते अपने प्राण लिखूं या तुझे मैं अपना अभिमान लिखूं ए वतन, मैं तुझे अपना महबूब लिखूंया गाँव में छिटकी होगी वो धूप लिखूं वो मैं सुबह सवेरे की राम-राम लिखूं या सुभाष, भगत, गाँधी का नाम लिखूं टैगोर सा यमुना-गंगा विंध्य-हिमाचल लिखूं बहुत याद आता भारत माँ का आँचल लिखूं कश्मीर की…
कविता नहीं मेरी कहानी
मैंने कविता सुनाई ‘बावरा मन’ वो बोले तभी नहीं लगते तुम प्रसन्न इतना दर्द तुम कहाँ से लाये होकौन है जिसे तुम भुला नहीं पाए हो फिर कहीं ‘दास्ताने इश्क़’ पर कुछ सुनाया लोगों को सुनने में भी बहुत मजा आया बोलते है – तुम रहे बड़े रंगीन मिज़ाज हो फिर क्यों इतने संजीदा दिखते…
गुज़रा साल
जैसे तैसे गुज़रा ये साल, नया आने को है इक तूफान की तरह जो आया, अब जाने को है कुछ इस तरह काटा, कुछ इस तरह बीता है बहुत-कुछ खोया, और थोड़ा-बहुत जीता है यूँ तो किस्से-कहानी होते हर पल, हर हाल में पर बड़ी अजीबो गरीब दास्तानें है इस साल में ताकती खिड़कियां, सूनी…
क्या ‘अर्जुन’ हो तुम ?
माथे पर तिलक लगा के भव्य सा कवच सजा के स्वर्ण कुंडल चमका के निज ओज को दमका के रणचंडी को करते ध्यान कर के इष्ट देव आव्हान जब निकलते हैं समर को हौसला की जैसे अमर हो हर योद्धा खुद को ‘अर्जुन’ ही मानता है जीतेगा तो सिर्फ वही, बस ये जानता है पर…
सीख श्री राम की
जब श्रीराम भक्ति का, चढ़ेगा हम पर रंग ,सीखेंगे हम उनसे, बदलेंगे अपने ढंग । मोहमाया, दम्भ में उलझे, हम कैसे बाहर आएं, भव सागर से निकलने का, रास्ता राघव दिखलायें । भटकते जीवन को सिर्फ, राम-संदेशों का है सहारा, उनकी आराधना से ही, जीवन तर जायेगा हमारा । उस ईश से सीखें, कैसे देना…