![](https://www.kaviarpan.com/wp-content/uploads/2021/04/war-games-battlefield-strategy-and-the-game-of-chess.jpeg)
ये खेल है, या है कोई समर !!
क्या होगा, हम जीते जो अगर ?
इसमें पड़ने से, क्या फर्क पड़ेगा ?
किसी अपने से ही अपना लड़ेगा !!
यहां सिर्फ मोहरे भिड़ेंगे या अहम् ?
कौरवों को पांडव होने का होगा वहम !!
और लड़ना भी उनके लिए जो सोये हैं ?
आलस्य और निज स्वार्थ में खोये हैं !!
बेचारे मोहरों को पता नहीं क्या होगा इनका !!
परवाह नहीं उन्हें, बन रहा में ख़ैरख़्वाह जिनका !!
कुछ मिलना नहीं, तो लड़ें क्यों, क्यों खेलें ?
क्यूँ आरोपों-प्रत्यारोपों के बाण झेलें ?
गर सब ऐसा सोचेंगे तो फिर कौन लड़ेगा ?
कुटिल शकुनि, फिर कुटिलता पर अड़ेगा !!
उसने चल दी है चाल, हम क्यों रहें सोचते ?
‘विश्वास’ वार हो चूका, तुम क्या रहा खोजते ?
चलो खेल ही लेते हैं, न रहेगा मलाल
बाद में न रहेगा, कोई शक, कोई सवाल
चलो खेल ही लेते हैं, Nice, yes don’t leave without trying