हर समय तुम्हें मिलूँ, दिखूँ सजकरकोई परी या अप्सरा सा बनकरजल्दी से बिखरे बाल बनानातुमसे अपनी झुर्रियां छिपानाउम्र के साथ बढ़ते वज़न को ढांकनातुम्हें मिलने से पहले आईने ताकनामाला चूड़ी पहन इत्र लगानाफिर अपनी अदाओं से लुभाना तब तुम्हारा कहना कि प्यार हैथोड़ा सा नहीं बेशुमार हैसोचने पर करता है मजबूरकि क्या ये प्यार ही…
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कुछ नहीं
जब भी पूछा ‘क्या सोच रहे हो’?तुमने ‘कुछ नहीं’ बोला हर बार उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने हमेशा सुने –तेरे अल्फ़ाज़ अनकहेवो ताने जो तुमने मौन सहेवो तेरे अश्क जो नहीं बहेऔर जज्बात जो उलझे रहे उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने महसूस की –छटपटाहट तेरे भीतरमुझे खो देने का डरदबी हसरतों के समंदरअनछुए ख़्वाबों के…
कविता ही तो है…
मन में आये भाव बोल दिएसीने में थे राज खोल दिएएहसास जगे तुक मिलायीअनेक रसों की बहार आयीकभी लिखा श्रृंगार तो कभी वीरकभी पात्र शिवाजी, कभी राँझा-हीरफलसफा कहा तो कभी इश्क, मनुहारएक ही बात कहने के हैं तरीके हज़ारकभी लोगों को हंसाया कभी आँखे भर आयीकभी रंगीन मिजाज तो कभी संजीदा सुनाईअल्फाजों के छौंक जज्बातों…