एक मंजिल की तलाश
क्यों इंतज़ार करे दिन का जब रात अभी ढली नहीं !
धूप छाओं की चाह में क्यों उलझ गया है तू
रात के अँधेरे में , क्यों खो गया है तू !
रात की निशा भी तो रोशनी से कम नहीं
उठ जा राही, अब जाग जा रात अभी थमी नहीं !
क्यों इंतज़ार करें प्रकाश का, जब खुद ही दिया है तू
खुद को जला उस रात में जब दुःख में डूबा हो तू !
मस्त निकल चल तू कहीं, मंज़िलों की कमी नहीं
आसमां में देख तू , चाँद की चांदनी बुझी नहीं !
अँधेरी रातें सबका हिस्सा, फिर क्यूँ उनसे डरता है तू
खुद को कमज़ोर मान के ,क्यों रुक जाता है तू !
इरादों में तू दम जगा, साहस की तुझमे कमी नहीं
खुद की आग बुझने न दे , मन की शक्ति अभी मिटी नहीं !
कठिन राह पे चलता चल ,होंसले बुलंद रख तू
एक है ज़िन्दगी , एक है आत्मा, किसका इंतज़ार कर रहा है तू !
कठिन हो राह या सरल हो ,चल ओ राही चलता चल
हर ख़ुशी में, हर दुःख में , मुस्कुराता चलता चल !