फर्क होता है
मायका और ससुराल में फर्क होता है
फर्क होता उठने बैठने में
बात करने के तरीके में
ससुराल की हलकी मुस्कान और मायके
वाली ठहाके वाली हंसी में,
फर्क होता है पसंद का खाना बनाने और खाने में,
मायके के शाम में और ससुराल की सुबह में
बेफिक्री सा मन जो घूमता है
बाबुल के आँगन में
ससुराल में चिंताओं में कही
जलने सा लगता है
माँ में आँचल में खिलखिलाता रहता है जो चेहरा
कही दूर जा के मुरझाने लगता है, झूठ बोलने भी लगता है
फर्क होता है बेटी बन के रहने में
फिर बहु बन के जीने में
कहने से सिर्फ बेटी बना के नहीं रख सकते किसी बेटी को
आवाज उसकी ऊँची हुई तो
असंस्कारी दिखने लगती है फिर वही,
शिष्टाचार की बाते सिखाने लगते है,
जब बात बराबर बैठ के मोबाइल चलाने की होती है,
फर्क होता है माँ बाप के लाड में
और ससुराल के प्यार में