वीर अभिमन्यु
चक्रवयूह को भेदने कि अभिमन्यु ने अब ठानी थी
गर्भ में सीखी थी विद्या, अब दिखलाने कि बारी थी।
चक्रव्यूह भेदना तो आता था उसको, पर लौटना ना ठीक से वह जानता था
वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
थे चिंता में धर्मराज कि कैसे भेजें अभिमन्यु को चक्रवयूह में
युद्ध नीति को बस वो मानता था
छल कपट का उसको जरा सा भी ज्ञान ना था
वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
दिला विश्वास पांडव पुत्रो को अब चक्रवयूह में घुसा अभिमन्यु
पहले द्वार पे ही जयदृत को उसने पराजय का स्वाद चखाया था।
फिर आंख घुमाखर देखा जब उसने, बाहर सभी पांडव वीरों को कौरवों ने पहले द्वार पे ही रोका था
पर अभी उसका साहस ना डोला था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
अब प्राण हथेली पे रखकर, वह शेरो कि तरह आगे बढ़ा
कैसे डर जाता वो कौरवो से, वह भी पुत्र अर्जून का था।
शिष्य था वह श्री कृष्ण का, शेरो कि तरह गरजता था
वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
अब उसने कौरवों का खंडन करना शुरू किया
पांडव वंशो का महिमा- मंडन करना शुरू किया।
सोलह साल कि उम्र थी उसकी, पर सामने खड़ी महावीरों कि भींड देख, वह हिम्मत ना हारा था
क्यूंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
एक- एक कर उसने अब छह द्वारो को तोड़ा था
सोलह साल कि उम्र में उसने हर द्वार पे एक महारथी को पिंछे छोणा था।
चक्र्यूह तोड़ने का उसका यह ज्ञान पुराना था
वो तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
पराजय का स्वाद चखाकर सबको, अब सातवें द्वार पे जा पहुंचा वीर अभिमन्यु था
सातवा द्वार भी तोड़कर पांडव पुत्रो और श्री कृष्ण का मान वह बढ़ाने वाला था।
पर अब श्री कृष्ण कि इस लीला का सबसे दुखद दौर आने वाला था
अब महाभारत के इस महायुद्ध में वीर अभिमन्यु को होना शहीद था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
यह तो श्री कृष्ण कि लीला थी, युद्ध नीति का खंडन उनको कौरवों से आरंभ करवाना था
सातवा द्वार तोड़ता देख अभिमन्यु को अब दुर्योधन का साहस भी डोला था।
आदेश पाकर दुर्योधन का आक्रमण किया सभी कौरवों ने
अब वीर अभिमन्यु अकेला था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
हमला करता देख सभी को एक साथ, अभी वो हिम्मत ना हारा था
एक- एक कर घायल सबको वह इतिहास पे अपना नाम लिखवा रहा था।
जब तोड़ा रथ कर्ण ने उसका, होगया वह थोड़ा व्याकुल था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
निहत्ता हुआ वह अस्त्र- शस्त्र से, पर अभी वह हिम्मत ना हारा था
अब उठा रथ का पहिया, वह गुस्से से खड़ा हुआ था
लिए हाथ में काल- चक्र वह अंगद सा अडा हुआ था।
दिखाकर उसने अपना वीर पराक्रम उसने देवताओं को भी अपना दीवाना बनाया था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
मृत्यु खड़ी देख कर सामने, वह अभी आसूं ना बहा रहा था
गुरु द्रोण को देखकर, उसने उनको भी ललकारा था
धर्मयुद्ध यह कैसा, उसने शत्रुओं को भी धिक्कारा था।
लेकिन उसके प्रश्नों का गुरु के पास भी ना कोई उत्तर था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।
पृथ्वी कि गोदी में वीर अभिमन्यु अब सो गया था
अर्जुन का यह तेजस्वी पुत्र, युद्ध में शहीद हो गया था।
सिखाकर हमको अमर सीख कि हिम्मत से हारो पर हिम्मत कभी ना हारो, सुभद्रानंदन वीर अभिमन्यु पंचतत्व में विलीन हो गया था
क्योंकि वह तो बस एक वीर था और वीरों के भांति लड़ना जानता था।।