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कहूँगी तो
कहूँगी तो सच नहीं मानोगे यक़ीनन
ये नूर-ए-शबाब, जो महक रहा
अर्सो के बाद तक़रीबन
बात वैसे गौर करने की है साहिब
वरना कहां गुल खिलते हैं पतझड़ में उसूलन!
पुरानी किताब में दबा वो ख़त
नज़र-अंदाज पढ़ा था तक़रीबन
अब खुदा की रहमत कहें या
डाकिये की अज़्मत ही समझिये
वरना कहां पहुंचते हैं
सही ठिकाने पे बेनाम ख़त अमूमन!
दरिया जानता है वजूद अपना
वाकिफ है दीया भी अपने अंजाम से
फिर भी रख रही हूँ
एक जलता दीया, इस दरिया की धार में
ना जाने किस अरमान में..
बात गौर करने की है साहिब
वरना कहां साथ चलते हैं आब और आतिश अमूमन!
हमनवा
वो हमनवा, हक़ीक़त औ’ हसरत की शाम
दीदार-ए-महबूब औ’ वो बरसती हुई शाम
वो सफर, सराबोर-राहें औ’ सरदी की शाम
कैद-ए-इश्क़ में गिरफ्त, वो आज़ादी की शाम
वो रफ़्तार, राज़दार औ’ रहबरी की शाम
नीम-ए-वक़्त औ’ वो फिसलती हुई शाम
वो पडाव, पहलू औ’ पसोपेशी की शाम
गुज़ारिश-ए-गोशा औ’ वो महकती हुई शाम
वो महफ़िल, मैकदा औ’ मदहोशी की शाम
खुमार-ए-हालत और वो थिरकती हुई शाम
अन्तर्द्वन्द
कोई देख ना पाए, अन्तर्द्वन्द चल रहा ख़ामोशी से
ऊपर तारों का महाकुम्भ , नीचे पसरा सन्नाटा है
निंदिया ने सबपे असर किया, मै जाग रहा ख़ामोशी से
बेहद बुलंद अव्वल सपने, फीके फीके बेस्वाद लगे
बदहवास सा भाग रहा, पर पिछड़ रहा ख़ामोशी से
रौशन रुतबे का मकड़जाल, बुनते बुनते ही उलझ रहा
बाहर चिराग ले घूम रहा, भीतर अँधियारा ख़ामोशी से
मरुभूमि की तपन बढ़ रही, दहक रही ज्वाला सी रेत
मै झुलसा, दम तोड़ रहा औ’ मेघा देखे ख़ामोशी से
ढलने को है स्याह रात, आ रहा भोर ख़ामोशी से
रोज़ मात खा तंग आ गया, पर एक ‘आस’ ख़ामोशी से
कोई देख ना पाए, अंतर्द्वंद चल रहा ख़ामोशी से…
मेहमानवाज़ी
सोचा आज उनकी मेहमानवाज़ी की जाए
वो आयें ना आयें तैयारी तो की जाए!
करीने से रख दिया है शरबत का ज़ार
मेज पर मोमबत्ती बैठी, पिघलने को तैयार
सजाया है बीचोबीच, इक गुलदस्ता दिलकश
भीनी-भीनी खुशबू में कुछ तो होगी कशिश
सुना है शौक़ीन हैं वो, क्यों ना साज़ लगा दिया जाये
वो आयें ना आयें तैयारी तो की जाये!
बेतरतीब किताबो को, कतार में लगाया है
थके कदमो की खातिर, कालीन बिछाया है
इक लम्बी दास्ताने-किताब लिए बैठे है हम भी
हुज़ूर ! कभी तो इधर भी मेहरबानी हो जाये
सुना है कातिब हैं वो, क्यों ना एक कलम रख दी जाये
वो आयें ना आयें तैयारी तो की जाये!
आईने में खुद को इत्मीनान से उतारा है
सांवली सूरत को बड़े नाज़ो से सवारा है
काजल-लाली-कंगन-बाली, सब बेकार ना जाए
या इलाही ! बस एक नज़र तो गौर फरमाये
सुना है जादूगर हैं वो, क्यों न एक ताबीज़ पहन ली जाये
वो आएं ना आयें तैयारी तो की जाए!