सबको जीने का हक दे दो
हम आज तुम्हें यह बतलाएँ
हम याद तुम्हें यह दिलवाएँ
तुमसे पहले हम आए थे
घर अपना यहीं बसाए थे
धरती अंबर था सब अपना
अच्छा लगता था वह सपना
पीछे पीछे फिर तुम आए
कह संग रहेंगे बहकाए
आरंभ में हम मंगल में थे
जब तुम हम सब जंगल में थे
जब तुमने खुद को अलग किया
धीरे धीरे सब विलग किया
थल छीन लिया, फिर जल छीना
कुछ और कदम अम्बर छीना
कितने ही जतन किए हमने
तुमने क्रमशः जीवन छीना।
जैसे तैसे हम रहे कहीं,
अब कैसे तुमको समझाएँ
अपनी राहें तुम भटक गए
हम कैसे तुमको दिखलाएँ।
कर कैद हमें खुश हुए बहुत
पर इतने पर तुम रुके नहीं
फिर हमें नचाया गली गली
हमको खा कर भी थके नहीं।
बस बहुत हुआ अब तुम सुन लो
जो सबका था सबको दे दो।
यदि रहना है तुमको सुखमय
सबको जीने का हक दे दो।
एक उड़ता हुआ मच्छर
गूंज रहे हैं अब तक जिसके, मेरे कानो में स्वर
भूल सका नही जिसको मैं, था वो एक उड़ता हुआ मच्छर
बैठा था कोने में छिपकर, देख रहा था इधर उधर,
बंद करी जैसे ही बत्ती, आ पहुँचा मेरे बिसतर पर
काट-काट कर मुझे रुलाया, उस मच्छर ने मुझे उठाया,
गुस्से में आकर मैनें भी ज़ोर से अपना हाथ घुमाया,
गिरा दूर जाकर वो मच्छर.
नींद उड़ादी थी जो उसने, सोचा बैठूं अब मैं पङ़ने,
जली जो बत्ती, झट्से उड़कर, पहुँच गया कोने में छिपने.
बैठा मैं कुरसी पर पङ़ने, दोस्त यार सब इंतेज़ार में (मच्छर के दोस्त यार)
सबने मूझको बहुत सताया, पारा मेरा बहुत चड़ाया
लड़ते हुए साहस दिखलाया, सबको मैंने मार भगाया.
लड़ते-पड़ते नींद आ गई, उठा सुब्ह कुरसी पर था मैं,
खून पड़ा था इधर उधर, मच्छर चिप्के थे पन्नों पर,
देखकर सब कुछ सोचा मैंने, सो पाऊँगा अब तो रात में.
पर देखा जो इक कोने में, मुसकुरा रहा था अपनी जीत पर,
कुछ घायल कुछ हुए शहीद, पर वो बैठा था वहीं दुब्बक कर,
सोच रहा था मन में शायद, ली है एक मच्छर से टक्कर,
अब इंतेकाम से रहना बचकर, अब इंतेकाम से रहना बचकर…
फिर उड़ा वो मच्छर
याद है मुझे वो दिन, जब मैं एक मच्छर से भिड़ा था
दर्जनों थे वो और मैं अकेला लड़ा था
रात भर जगाया था मुझको ज़ालिमों ने,
कोई शस्त्र मेरे पास ना था, फिर भी महायुध कड़ा था
रात कब बीती, ना पूछो यारों,
सुबहे होते तक मेरी पुस्तक और मेरा बिस्तर शहीदों से भरा था
बस एक ही था जिसे मोक्ष ना मिला था,
बाकी हर कोई स्वर्गलोक के द्वार पर खड़ा था
रातें बीती, दिन बीते, और बीते सालों साल,
मैं भूला उस मच्छर को और आया सरहदों पार
उधर पीढ़ियां गुज़री कई हज़ार, पर बुनती रही वो जाल,
इंतकाम की आग थी जलती, वे भूल ना पाए थे हार
फिर आया इक दिन, जब मैं लौटा वापस देश
इंतज़ार सब करते थे, पर बदल लिया था भेष
रखा पाँव धरती पर मैंने, देख वो सब चिल्लाए
मारो काटो ख़ून बहादो, इस बार ना बचने पाए
अब कौन बताये इन मासूमों को, मैं अपने देश था आया
जहाँ अभिनंदन से वीर हैं बस्ते, कोई आँख उठा ना पाया
खैर! घर पहुँचा मैं, थी तय्यारी, करेंगे सर्जिकल स्ट्राइक
वक़्त था तय, कुछ रात में गयारह, बस बंद हो कमरे की लाइट
पर कहते हैं ना, बच्चे पे विपदा एक माँ लेती है जान
श्याम हुई और ओडोमॉस से मम्मी ने सबका किआ काम तमाम
मैंने ना सोचा कितने थे या कितनो ने प्राण गवाए
बढ़िया से पकवान बने थे, O Boy, I did enjoy
असमंजस में सब थे अब, जो बच निकले औऱ भागे
युध अभी आरम्भ हुआ ना, कोई रहा पीछे ना आगे
फिर भी कुछ ऐसे भी थे, जो मानें नहीं थे हार
सुना है कहते लोगों को, वह आएंगे सरहदों पार