
क्षणिकाएं
उन्होंने जो
अपनी पलकें
बन्द करीं
हजारों ख्वाब
झिलमिलाए
कुछ ख्वाब
हकीक़त हुए
कुछ ख्वाब
ख्वाब से
ज्यादा ना
हो पाए।
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लम्हा लम्हा तेरी याद
ज़र्रा ज़र्रा तेरे नाम
खोया खोया मैं यहां
डूबा डूबा तुझमें ज़ाम।
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ए दिल
देख शोर मत मचाना
इस चंचल मन
को समझाना
उनकी भी तो मुश्किल सोच
चाह कर भी
हमेशा के लिए
तेरे पास नहीं आ पाना।
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कल तेरा जो हाल था
आज मेरा वो हाल है
कल तेरे हुस्न
का सवाल था
आज मेरे इश्क
का सवाल है।
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लम्हा लम्हा तेरी याद
ज़र्रा ज़र्रा तेरे नाम
खोया खोया मैं यहां
डूबा डूबा तुझमें ज़ाम।
+++++++++++++
तेरे ऊपर इस क़दर फना हूं
कि बिना इजहार करे
रह नहीं पाता हू
एक शेर पूरा नहीं होता
कि दूसरे पे आ जाता हूं।
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कुछ बात तो है उसमें
जो मैं उसका हो गया
जब भी खुशी चाही
उसकी यादों में खो गया
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वह उसका एक इशारा ही तो था
जो मैंने उस पर दिल वारा था
आधा अधूरा मन यहां,
क्योंकि वहां इश्क सारा था
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कुछ काम ना काज
ना कल, ना आज
बस, खालिस जज़्बात
ना सुर, ना साज
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बस, दिल से दिल तक
पहुंचने वाली आवाज़
दुनिया का शोर गुल
बस, कुछ चुप्पी, कुछ राज
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ना मिले, ना गिले
बस, खामोश मोहब्बत
और, ऐसी मोहब्बत पर नाज़
तू काम-ना ही रहना
ना काम मत होना
पा लिया है मुझको
ज़िन्दगी भर
कभी ना खोना
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तेरी मदहोश
आंखों में
आंखें डालने
से डरा करते थे
कभी
हम भी यारों
होश में जिया
करते थे
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कीमत तो हमारी आज भी बहुत है
इश्क के बाज़ार में
क्या करें मगर
लुटा दिया है हमने सब कुछ अपना
तेरे प्यार में
तू मोहब्बत करता है मुझसे
ये मैं भी खूब जानता हूं
इसीलिए तो जीत
अपनी ही समझता हूं मैं
इस हार में
सिसकी
बस उन्होंने तो
यूं ही कह दिया।
नादां हैं हम,
हमने दिल में
ले लिया
और एक पल
में सारे ख्वाब
डह गए।
वह तो यूं ही कह
कर आगे बढ़ गए,
मगर हम तो
जीते जी ही मर गए।
हंसी-ठिठोली
चल रही थी,
मगर
उनकी पूरी
संजीदगी से कही
बात सुन,
हम निशब्द रह गए।
अंदर ही अंदर,
एक सैलाब उठा,
हाथों ने कलम उठाई
और हम,
सिसकियों में बह गए।
दिल से उतर ना जाए कहीं
वह तेरा दीवाना बन कर
भटकता फिरता है
मुंह ना फेर उससे
घर ना लौट जाए वह कहीं
गुरूर इतना भी ना कर
अपने हुस्न पर
तेरे से मन उसका भर ना जाए कहीं
अभी तो रानी है तू उसके दिल की
अहमियत उसे भी दे वरना
दिल से तू उतर ना जाए कहीं
कामना करता है वह तेरी हर रोज़
जगा कर रख उसे हरदम
हसरत तेरी मर ना जाए कहीं
इतरा मत उसकी
इस बेपनाहआशिकी पर
जहां शुरू करा था ये
वहां वापिस पहुंच
ना जाए ये अफसाना कहीं
याद रख तू एक बार
इस दौर से गुजर चुकी है
उसके प्यार की कद्र कर
दिल टूटने वाला वह मंज़र
दोबारा सामने ना आ जाए कहीं
एक नई सुबह
फिर एक सुबह और आई है
तेरी रात की याद
इस सुबह तक चली आई है
इंतज़ार तेरा
खत्म होने को नहीं आता
मगर
मेरे से मिलने की कोशिश
तुझे हौसला देती आई है
मैं वैसे तो तेरा
हो चुका हूं
पर तू अभी खुश नहीं है
क्योंकि तू अभी पूरा
कहां मुझे पाई है
ना तू लड़ पाती है
हालातों से
ना मैं कोई कदम उठाता हूं
दोनों ही दिल से
और दुनिया से लाचार
ये कैसी मजबूरी आई है
इतनी जल्दी क्यों हालातों के आगे
घुटने टेकती है तू
तैयार कर अपने आप को
थोड़ी तो लंबी ये लड़ाई है
तू तो उम्र भर
सच्चे प्यार को तलाशती रहा
एक असफल रिश्ते को
सफल करने की कोशिश करती रही
ये तो मानेगी ना तू
मेरे रूप में
तूने कुछ तो खुशियां पाई हैं?
‘फिर एक सुबह और’
ये बेशक है
मगर यकीन कर तू
थोड़ा ठहर तू
कुछ वक्त की ही तो बात है
तू खुद कहेगी फिर
“एक नई सुबह
मेरी ज़िन्दगी में आई है”
तू ही
तू ही
मेरी दीवाली है
तू ही मेरी होली
तू ही मेरा चंदन
तू ही मेरी रोली
तू ही मेरी
कामना है
तू ही मेरी
इश्क की बोली
तू ही मेरी दिलबर है
तू ही मेरी हमजोली।
वक्त, इश्क और रिश्ते
जब वक्त बीतने का
पता ही ना चले
जब वक्त की सुई
की टिक-टिक
के साथ उसके
दिल की धक-धक का
पता ही ना चले
जब प्यार की चाशनी
में चीनी की मात्रा
कम डलने लगे
और धीरे-धीरे मिठास
का कम होने का
पता ही ना चले
जब वक्त का पहिया
इश्क के जुनून
पर हावी होने लगे
और मुहब्बत का
हौले-हौले दम तोड़ने का
पता ही ना चले
तो समझ लेना चाहिए
आज के कसमें वादे
तो अपनी जगह ठीक हैं
पर रिश्ता पता नहीं
कल चले ना चले
कुछ धूप चुरा लाए हैं
अब हमें सुकून है
दिल की तेज धड़कनों से
बहुत परेशान करता था ये दिल,
मगर अब नहीं,
अब तो हम ये चुपके से,
उनको दे आए हैं
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
बात-बात पर वह नहीं,
हम रूठ जाया करते थे
मनाते थे जब वह
तो झट मान भी
जाए करते थे,
मगर अब
इतना बदल दिया है हमको,
उनकी बेपनाह मुहब्बत ने
वह ज़माने कहीं हम
पीछे छोड़ आए हैं,
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
इश्क करना बेशक
हमसे सीखा उन्होंने,
मगर देखा उनका जो हम
पर फना होना,
तो कुछ खूबियां उनकी
हम भी अपने अंदर
भर लाए हैं,
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
धूप-छांव का तो सब
खेल है ये ज़िन्दगी, दोस्तों
छांव उनके हसीन गेसू की,
और धूप उनके जुनून की
हम भी इस धूप-छांव में
अपने को भिगो आए हैं,
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
जिस आंगन में खेलना था उसको
वह आंगन चारों तरफ से =
बन्द कर दिया गया,
रुआंसी हो कर बोली धूप-
‘यहां तो दम घुटता है मेरा’
हम उसकी चमक को,
अपनी आंखों में बसा लाए हैं,
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
वादे क्या करें हम
कसमें क्या खाएं
उम्मीदों पर टिकी है हर रात।
हम भी कल ज़िन्दगी
का एक नया आगाज़ होगा,
यह सोच जीते आए थे,
यह सोच जीते आए हैं,
कुछ धूप चुरा लाए हैं।
मोहलत
थोड़ी मोहलत
दे दे मुझे ऐ ज़िन्दगी
कुछ काम ना कर
पाया हूं मैं
वह तो पूरे कर लूं!
दूर-दूर से ही बातें
होती आई हैं उनसे
पास बैठा दूं उन्हें ज़रा
वह मेरी ओर मुखातिब हों
और मैं सिर्फ खामोश
उन्हें देख-देख कर
अपना जी भर लूं!
मैं कोई ऊपर से आया
फरिश्ता तो नहीं
गमगीन और परेशान
बहुत हैं इस दुनिया में
मगर चेहरा जब कभी
देखता हूं उदास उनका
ऐसा लगता है कि
उनके सारे दुख
मैं हर लूं!
वैसे तो कत्ल करने
के लिए उनकी आंखें
ही काफी हैं
मगर मज़ा तो
तब है दोस्तों
जब शहीद भी
हो जाऊं मैं
और इल्जाम भी
अपने सर कर लूं!
ज़ुल्फ उनकी खुले
कांधे पर गिरे मेरे
और मैं सावन के
बादलों की गड़गड़ाहट
से बेखबर उन
काली घटाओं में
कुछ देर और विचर लूं!
अब कौन डरता है
मौत के स्याह साये से
आती है तो
आ जाने दे
बस इतनी तो
मोहलत दे दे मुझको
अगर आगोश
में हूं उनकी
तो क्यों ना खुशी से
मैं मर लूं?
कशिश
तेरे लिए जो बाहर
बरस रहा है सावन
वह बारिश हूं मैं
दूर बेशक हूं
तेरे से मगर
हर पल
जो खींचता हूं
तुझे अपनी तरफ
वह कशिश हूं मैं
थकी-थकी, उदास सी
थी तेरी ज़िन्दगी
फूंक दी जिसने
जान उसमें
वह रवाईश हूं मैं
जिसको पूरा करने की हसरत
तुझे कल के सपने दिखाए
पूरा हो सकने वाली वह ख्वाहिश हूं मैं
गुमनाम
ना वह बदनाम थी
ना मैं बदनाम था
कुछ बात ऐसी
कह गई वह
मदहोश कहां
हाथ में मेरे
बस खाली जाम था
जिसको हमने
इतने नाजों से
अपनी ज़िन्दगी में
सँवारा था
कुछ बात ऐसी
कह गई वह
हम लगे सोचने
क्या गिरा हुआ
वह नाम था?
लुक छिप कर
डर-डर करते थे
हम मुलाकातें
कुछ बात ऐसी
कह गई वह
कि हमको लगा
इश्क अपना
सरेआम था
मुहब्बत अपनी
सीढ़ी दर सीढ़ी
मंज़िल की तरफ
बढ़ रही थी
कुछ बात ऐसी
कह गई वह
कि फलता फूलता प्यार
अब गुमनाम था।
उस पार
मैं शिकायत भरे लहज़े से बोली
ज़िन्दगी से
“कितने इम्तहानों से तो तेरे
गुजर चुकी हूं मैं हर बार”
ज़िन्दगी ने हंस कर दिया जवाब
“फिर एक बार
और हो जा तैयार”
याद आते हैं मुझे
वह नाकाम मिन्नतें,
वह फिजूल कोशिशें
सिर्फ मैंने ही तो देखा था }
वह मंज़र
अकेले बैठ कर
अपने रोने का, ज़ार-ज़ार
उम्र भर तरसती रही
ज़ज्बातों के बयां के लिए
वापिस आ तो गए हैं ‘वह’
मगर उनकी नज़रों की अब
कहां है मुझे दरकार
ज़िन्दगी का अजब
देखा खेल
अब जब मिल गया
मुझे किनारा
तब वापिस आएं हैं ‘वह’
जिन्होंने कभी
मुझे छोड़ दिया था मंझधार
फिर भी
पुराने शिकवे
सब भूल जाती मैं
अगर खुद से
वापिस आए होते ‘वह’
इस आने को मैं
वापिस आना मानूं कैसे
यह तो महज़
उनके ऊपर है हालातों की मार
ज़िन्दगी से क्यों करूं
मैं अब गिला
दो दशकों से
नहीं मिल पाया था मुझे जितना
उतना मिल गया
मुझे इन दो सालों में प्यार
शुरू में समझ बैठी थी
उनकी घर वापसी को
‘विजय’ अपनी
मगर दिल बोला
“जीत तो तेरी
तभी हो चुकी थी पगली
जिस दिन ‘ये’
तेरे ऊपर गए थे दिल हार”
मगर अब तो
मैंने भी ठान लिया है
किसी कशमकश में
नहीं रहूंगी मैं
बहुत सह चुकी
वक्त के थपेड़े
कल का भी इंतजार
क्यों करूं
मुझे तो आज ही जाना है
उस पार।
मुझसे भी तो पूछो
क्या-क्या मैंने सोचा था
कितनी उम्मीदें थीं
उस शख़्स से
जो कभी मेरा अपना था
वक़्त की सुई बढ़ती रही
मैं भी कल की
आस में जीती रही
मगर अफसोस
उन्होंने कोई
कसर नहीं छोड़ी
कुचलने में
जो मेरा सपना था
बहुत अरमानों के साथ
शुरू करा था
एक नया सफ़र
मगर घाव ऐसा
दे गए वह
जो उम्र भर, भरना था
एक मां और पत्नी
का फ़र्ज़ निभाते
कट गए साल,
इच्छाएं थीं
बहुत कुछ करने की
मगर जब वक्त आया
तो वह भी
‘ना’ कर पाई ‘काम’
जो मुझे करना था
अपनों का झूठा
अपनापन जो देखा
खुद से ही
हो गई मैं गैर
गैरों ने जब थामा हाथ
नहीं कह पाई मैं कुछ
ऐसा भी क्या डरना था?
तू मेरा संसार है
सावन की सुकून देती बदली
और सुलगती बारिश
इस बारिश की जो फुहार
ऐसा लगता है
मेरे गले में
तेरी बाँहों का हार है
बेमतलब, बेरंग सी
थी ये ज़िन्दगी
तूने जब से कदम रखा,
इस सूने जीवन में बहार है
क्यों करें कल की फिक्र हम
चल आज में जीते हैं
आज तू है, मैं हूं
और प्यार ही प्यार है
यूं ज़ाया मत कर
वक़्त फिजूल की बातों में
ज़िन्दगी का क्या भरोसा
जीने के दिन बस चार हैं
तू इश्क कर मुझसे
मैं इबादत करूं तेरी
पर याद रख
मुहब्बत, मुहब्बत तब है
जब उसका इजहार है
तू नहीं तो
कुछ भी नहीं मेरे पास
पर तू है तो सारा संसार है
यूं ही गुजर गई रात
यूं ही गुजर गई रात
कुछ उसने कहा
कुछ मैंने सुना
बस बातों से
निकलती गई बात
यूं ही गुजर गई रात
कुछ लहरें उठीं
कुछ खामोशियां छायीं
उन खामोशियां की
आपसी सौगात
यूं ही गुजर गई रात
कुछ पुराने वादे
कुछ पुरानी यादें
उन पुरानी यादों की
एक लम्बी सी बारात
यूं ही गुजर गई रात
मेरा उसको समझना
उसका मुझको सुनना
बस कहते सुनते
बह निकलते जज़्बात
यूं ही गुजर गई रात
किसी गुत्थी का उलझना
उलझते-उलझते सुलझना
और सुलझते ही
तय हो जाना
शतरंज की शह और मात
यूं ही गुजर गई रात
ना वह मेरे पास
ना मैं उसके पास
कुछ फासले
उन फासलों की वजह से
हाथों में कहां हाथ
यूं ही गुजर गई रात
कुछ दिल की उदासी
कुछ ना मिलने का गम
मन के सूखे मरुस्थल में
उसके अश्कों की बरसात
यूं ही गुजर गई रात
यूं ही गुजर गई रात
मरे कोरोना
श्याम सुंदर
गुजर गए
अफसोस तो था
मगर साथ में
रोष भी था
अभी क्यों मरे
अब दाह संस्कार कैसे करें
क्योंकि दुनिया भर की
पाबंदियों के बीच
शव यात्रा के इंतजाम
इतने आसान कहां
पृथ्वी लोक में
तो इसी पशो-पेश
में हो रही थी देर-दार
और वहां
श्याम सुंदर
ने खुद ही खोला दिया था
यमलोक का द्वार
कोई लेने तक नहीं आया
अंदर पहुंचे तो पाया
दूर-दूर तक सन्नाटा
एक आत्मा की
नज़र उन पर पड़ी
उसने फौरन डांटा
मास्क नहीं है
श्याम सुंदर बोले
वो तो वहीं है
क्या मतलब?
अच्छा थोड़ा खड़े हो पीछे
श्याम सुंदर ने बताया
मास्क तो रह गया नीचे
मतलब तुम बिना
मास्क के ऊपर आए हो
तुम जैसे लोग ही तो
अपने साथ कोरोना लाए हो
खैर अब चलो
चित्रगुप्त जी के पास
श्याम सुंदर सकपकाए
मगर मेरा मास्क
अच्छा रुको पहले
तुम्हारी थर्मल स्क्रीनिंग होगी
क्या पता तुम कोरोना के ना हो रोगी
मगर ज़रा देखो कमाल
कोरोना तो निकला काल का भी काल
श्याम सुंदर को पोजिटिव पाया गया
उनको उसी समय कौरंटाइन सेंटर लाया गया
यमराज ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने के बाद
यमदूतों को बुलाया
अभी तक जो भी आया सो आया
हमें अब एतिहात बरतना है
पृथ्वी लोक में किसी को भी नहीं मरना है
हमें जिसका डर है
वही हो रहा है
कोरोना यहां पर भी अपने बीज बो रहा है
हम आज से ही कमप्लीट लॉकडाउन
की घोषणा करते हैं
फिर देखें पृथ्वी लोक में कैसे लोग मरते हैं
हमें कोरोना के ऊपर विजय प्राप्त कर के दिखाना है
यमलोक से कोरोना को भगाना है
आज से सब यमलोक वासी ‘डिवाइन डिस्टेंसिंग’ का पालन करेंगे
और सब मिल कर ये जंग लड़ेंगे
अब आप सोच रहे होंगे कि इस सब के बीच
श्याम सुंदर का क्या हुआ
इससे अच्छा तो पृथ्वी पर ही था मुआ
वह अब १४ साल सेल्फ आइसोलेशन में बिताएगा
उसके बाद ही पता लग पाएगा
कि उसे क्या मिलेगा
स्वर्ग या नर्क
“मरे कोरोना
तेरा बेड़ा गर्क”
हे प्रभु
कल सुबह
जब प्रभु की आंख खुली
तो पृथ्वी पर देखा
एक विचित्र नज़ारा
सुबह पौ फटने से पहले
आदमी बाहर सारा
इतनी भीड़-भाड़
प्रभु तुरंत गए ताड़
उन्होंने सेवक को बुलाया
‘देखो जरा वक्त की मार
राशन के लिए कितनी लंबी कतार
कोरोना ने तो कर दिया है
आदमी को पस्त’
‘हे प्रभु, तभी तो वह बाहर है
होने के लिए मस्त’
‘ऐसा कहने का
तुम्हारा क्या पर्याय
तुम चाहते हो वह
भूखा मर जाए’
‘हे प्रभु, यह
भूख नहीं
ये तो प्यास का सवाल है’
‘तुम्हारा मतलब ज़ल
के लिए इतना बवाल है’
‘हे प्रभु, जल
ना भी हो, तो भी कल है
मगर स्वच्छ, निर्मल जल
इन पियक्कड़ों का कहां हल है
ये लोग तो सोमरस
के लिए पंक्ति में खड़े हैं
कहीं चिलचिलाती धूप
कहीं ओला, कहीं बारिश
तब भी अड़े हैं
कोरोना के खिलाफ
इनके योगदान का जज्बा
देखते ही बनता है
तभी तो कहा जा रहा है
कोरोना की लड़ाई में
आगे आम जनता है
इन्होंने कसम खाई, मेरा मतलब पी है
कोरोना के खिलाफ विजय पताका अपने हाथों में ली है’
‘मगर इनके हाथों में तो बोतल है’
‘हे प्रभु, यही तो इनकी शक्ति, इनका बल है
खुद लड़खड़ाएंगे, मगर लड़खड़ाती
अर्थव्यवस्था को संभाल लेंगे
कोरोना वारियर्स में लोग इनका भी नाम लेंगे’
‘अच्छा, इनके सोमरस में ऐसा क्या खास है’
‘हे प्रभु, आज के इस मुश्किल दौर में
यही इनकी अकेली एक आस है
ये तरल पेय इनमें आत्मविश्वास भरता है
इसके अंदर जाते ही
कोरोना से कौन डरता है
इनका सोमरस
हमसे ज़्यादा असरदार है’
‘फिर तो हमें भी इसकी दरकार है’
‘हे प्रभु, आप ये क्या कह रहे हैं
आप तो बिना पिए ही
बहक रहे हैं
कहां आपका उच्च स्थान प्रभु
कहां ये निम्न स्तर की दारू
भगवन ये मुंह लगाने लायक चीज नहीं है
पृथ्वी के दारूबाजों के लिए ही सही है’