सजनी मैं राह तकूं
प्रीतम आस करूं
पिया देर करी नहीं आए
कहां देर लगी वो न आए
रैन सारी मैंने जाग के काटी
आंख जली रो रो उनको बुलाती
किधर चलूं कहां खोज करूं
पिया देर करी नहीं आए
कहां देर…
पिया की छवि मैंने मन में बसा ली
केश हैं कारे नजरिया कारी
कैसे प्राण रखूं कैसे धीर धरूं
पिया देर करी नहीं आए
कहां देर…
चरण पिया के मैं हिय से लगाऊं
जावे तो संग मैं भी उनके जाऊं
कब से देख रही उनको सारी गली
पिया देर करी नहीं आए
कहां देर…
मैं और तुम
मैं पुष्प माल तव हृदय विराजूं
मैं पीत दाम श्यामल पर नाचूं।
मैं मोर पंख शीश पर धारण।
मैं राधा नाम तुम करो उच्चारण।
मैं वंशी काठ तुम स्वर भरते हो।
मैं ब्रज की नार तुम स्नेह करते हो।
मैं रज तुम्हारे चरण की दासी।
मैं शरद रात्रि तुम चंद्र उद्भासी।
मैं चंदन पुनीत मस्तक धरते हो।
मैं मधु माखन तुम मुख भरते हो।
मैं प्रेम दान तुम देनहारा।
मैं शंभू नाथ नित प्रेम तुम्हारा।
मैं अंजन नयन श्रृंगार पूरक।
मैं वर्षा तुम मदमत्त मयुरक।
मैं धूप दीप नंदलाल अंचित।
मैं राग नव तुम प्रेम रंजित।
मैं राग नव तुम प्रेम रंजित।
मैं तुमसे जरूर मिलूंगी
मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी
आज कल या किसी रोज़ सही
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी
अपने प्रेम को समेट तुम्हारी उस से पूजा करूँगी
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी
हृदय की दीवारों पर तुम्हारा नाम लिख कर
यादों के बिस्तर पर प्रार्थना की चादर बिछाती हूँ
तुम आओगे सोचकर हर शाम आस्था का दीपक जलाती हूँ।
इसके बुझने पर खुद जलती हूँ, जलती रहूँगी
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी।
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी।
प्रीति पुष्पों से तुम्हारा श्रृंगार कर
नेत्र जल से चरणों का बुहार करती हूँ
तुम्हारे अंक में सिमट जाने की आकांक्षाओं की कितनी कठिनाई से सम्भाल करती हूं
प्रतीक्षित हृदय तरंगों से तुम्हें अपरिमित संदेश लिखूंगी
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी।
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूंगी।
दूरियाँ, दिलों की नज़दीकियों को कम नहीं कर सकती।
मैं पहले ही तुम्हारी हूँ तुमसे बिछड़ नहीं सकती।
तुम्हारे आने तक तुम्हे हृदय में,यादों में, नयनांजली में भर के रखूंगी
पर मैं तुमसे जरूर मिलूँगी
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी।