जिंदगी एक किताब
एक किताब थी ये ज़िन्दगी ,
जिसका एक नया पन्ना में हर दिन पलटती रही ,
और एक नया पन्ना इसमें जुड़ता गया ,
कभी हँसी इन्हें पढ़ कर में दो पल के लिए ,
तो कभी सोई लेकर आँखों में नमी ,
कभी सपनों को सजोया मैंने ,
तो कभी अपने बिखरे सपनों के टुकडो को एक धागे में पिरोया मैंने ,
हर पन्ने पर एक नया दोस्त मिला ,
कुछ पन्नो का ही था उसका मेरा सफ़र ,
एक सफ़र ख़त्म हुआ तो दूसरा शुरू हुआ ,
कभी पन्ने ख़त्म होते नहीं इस किताब के ,
रूकती नहीं , ख़त्म होती नहीं एक सफ़र पर ये ,
बस चलती रहती हैं ये ज़िन्दगी ,
हर नयी कहानी के लिए में एक नया पन्ना पलटती रही,
और एक नया पन्ना जुड़ता गया ,
बस चलती रहीं ये ज़िन्दगी ……………
काश
सोचती हूँ किसी दिन
क्या है इन निगाहों की कहानी ,
काश तुम समझ पाते
जो बातें बंद जुबान से कहनी चाही ,
शायद तुम सुन पाते ,
जो भावनाए बंद है इस
दिल में ,
शायद तुम खोल के देख पाते ,
अक्सर उम्मीदों के बादल की बूदों से ,
सजे फूलो को तुम
अपने हाथो से ,
मेरे जूड़े में लगा जाते ,
जो कहीं खेल रही थी तित्तली
,
उनके पंखो में लिखी मेरी उड़ने की हसरत को ,
काश तुम जान जाते ,
साथ शुरू से बना गानों में से
किसी दिन एक गाना तुम मेरे लिए गा जाते ,
इन्द्रधनुष के सात रंग
से बनी मेहंदी को तुम,
इन हाथो में लगा जाते ,
तुम्हारी दुल्हन बनी सेज पर बेठी हू में ,
काश मेरा घूघट तुम ,
किसी दिन हटा जाते ,
आज भी दीवार की,
वो तस्वीर सुनी पड़ी है ,
काश इस में तुम अपना चित्र लगा जाते ,
में आज भी इस बेजान शरीर को लेकर जी रही हूँ ,
काश इसकी भटकती रूह को तुम मिल पाते …………………….