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इन्तेजार
बिस्तर की सलवटे कह रही है बैचैनी की कहानी तकिये की नमी से लगता है रात भर रोती रही दीवानी तन्हा राते, तन्हा जीवन, चारो ओर तन्हाई उलझी लटें, तकती आँखे, कह रही थी व्यथा की गहराई तीन महीने पहले, शायद थोड़ी सी मुस्करायी थी जब पडोसी की चिठ्ठी, गलती से इसके घर चली आयी…
मेरे बाबा
मेरे बाबा, किस बात पर, हो मुझसे नाराजअनसुनी कर रहे हो, या आ ही नहीं रही मेरी आवाज एक वो भी दौर था – जब मेरी हर बात सुन लेते थेमैं जितना मांगता था – उससे ज्यादा ही दे देते थेवो शिरडी में, आपके दर पर होती थी, अपनी ढेर सारी बातेंआपके आशीर्वाद की छाया…
अपने सपने
यही हलकी हलकी ठण्ड थी, और यही थे दिल्ली के रास्तेवो अपने और में अपने कॉलेज से यहाँ आया था, किसी काम के वास्ते जल्दी ही पहचान हो गयी और होने लगी बातमुझे उनका और उन्हें मेरा, पसंद आने लगा था साथकिस्मत का मिजाज भी कुछ रंगीन होता जा रहा थाजिस काम को कुछ दिनों…
पहला प्यार
सालों बाद आज उनसे मुलाकात हो गयीसड़क पर अकेले जा रहे थे, कि ये बात हो गयी सालों पहले इसी तरह टकरा गए थे हममैं उस समय सत्रह का था ओर वो सत्रह से कुछ कमजवां होती उमंगो के लिए नया-नया सा था अहसासलगा जैसे मिल गया कोई, जिसकी थी तलाशधीरे धीरे हम एक दूजे…
सीमा पर खड़ा जवान
सोचो की अगर सीमा पर खड़े जवान को –सर्दी लगने लगे पहाड़ों में या कांपने लगे वो जाड़ों में मनाना गर चाहे घर जाके दिवाली या होलीबंदूक छोड़ याद आये बिंदी, कुमकुम, रोलीप्रियतमा की याद सताने लगेमां का वो आँचल बुलाने लगेवो गाँव का घर और यारों की टोलीअल्हड यादें वो सूरतें कई भोलीउसे याद…